इस ध्यान का अभ्यास करने के लिए: ऑडियो डाउनलोड करें और नीचे दिए गए चरणों का पालन करें।
बैठकर अपनी आँखें बंद करें और बेतुके शब्द या ध्वनियाँ बनाना शुरू करें – कोई भी ध्वनि या शब्द जो अर्थहीन हो। कोई भी ऐसी भाषा में बोलें जिसे आप नहीं जानते! जो भी आपके अंदर है उसे अभिव्यक्त करें। मन हमेशा शब्दों के संदर्भ में सोचता है, और गिबरिश इस निरंतर मानसिकता को तोड़ने में मदद करता है। अपने विचारों को दबाए बिना, उन्हें बाहर निकालें। इसी प्रकार, अपने शरीर को भी अभिव्यक्त होने दें।
कुछ मिनटों के गिबरिश के बाद, एक ढोल की आवाज़ आती है, तब गिबरिश बंद हो जाता है। ओशो की आवाज़ सुनने वाले को गहरे मौन, स्थिरता, और शांति की स्थिति में ले जाती है, जैसे कि "चुप रहो, अपनी आँखें बंद करो... शरीर का कोई भी हिस्सा हिले नहीं – स्थिर महसूस करो। भीतर जाओ, गहरे और गहरे, जैसे एक तीर। सभी परतों को भेदकर अपने अस्तित्व के केंद्र को छू लो।"
एक और ढोल की आवाज़ और बिना किसी तैयारी के, अपने शरीर को ऐसे गिरने दो जैसे चावल की बोरी हो। पूरी तरह से शांत और आरामदायक स्थिति में पीठ के बल लेट जाएं, और ओशो की आवाज़ आपको गहरे मौन में ले जाती है।
अंतिम ढोल की आवाज़ पर, ओशो की आवाज़ आपको पुनः बैठने के लिए कहती है, और आपको यह याद दिलाती है कि इस अनुभव को अपने दैनिक कार्यों में भी शामिल करें।